Byline: Shubh Times Editorial | 22 अगस्त 2025
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेश में साफ किया है कि आवारा कुत्तों को पकड़ने के बाद उनकी नसबंदी और टीकाकरण किया जाए और फिर उन्हें उसी इलाके में छोड़ा जाए। केवल वही कुत्ते जिनमें रेबीज संक्रमण है या जो अत्यधिक आक्रामक हैं, उन्हें अलग रखा जाएगा।
आदेश क्यों अहम है?
पिछले कुछ महीनों में डॉग-बाइट्स और सड़क हादसों के कई मामले सामने आए हैं। इससे जनता में नाराजगी थी और सुप्रीम कोर्ट पर दबाव था कि कोई ठोस निर्णय लिया जाए।
जनता की राय
सर्वे बताते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में 71% लोग कुत्तों को सड़कों से हटाने के पक्ष में हैं। जबकि पशु अधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि यह अमानवीय होगा।
व्यवहारिक चुनौतियां
- दिल्ली में फिलहाल केवल 20 एनिमल कंट्रोल सेंटर हैं।
- लाखों कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण करना संसाधनों के बिना मुश्किल है।
- निगरानी और ट्रैकिंग सिस्टम अभी बहुत कमजोर है।
विशेषज्ञों की राय
एनिमल वेलफेयर विशेषज्ञ कहते हैं, “नसबंदी और टीकाकरण का रिकॉर्ड डिजिटल होना चाहिए, वरना यह सिर्फ कागज़ी कार्रवाई बनकर रह जाएगा।”
जनसुरक्षा बनाम पशु अधिकार
यह मुद्दा दो ध्रुवों में बंट गया है। एक ओर माता-पिता कहते हैं कि बच्चों की सुरक्षा सबसे पहले है। दूसरी ओर पशु प्रेमी इसे मानव-पशु सह-अस्तित्व के सिद्धांत के खिलाफ मानते हैं।
भविष्य की राह
अगर आदेश को सही से लागू करना है तो जियो-टैग कॉलर्स, नियमित हेल्थ चेकअप और गोद लेने की योजनाओं को मजबूत करना होगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश एक संतुलित दृष्टिकोण है, लेकिन इसका असर तभी होगा जब सरकार और स्थानीय निकाय इसे ईमानदारी से लागू करें।
— यह लेख सार्वजनिक चर्चाओं और लेखक की राय पर आधारित है।

